BJP

Neha Agrawal Neha Agrawal            April 14, 2020 7:47 pm

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BHARTIYA JANTA PARTY

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Overview

 

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), जिसका अनुवाद अंग्रेजी में “इंडियन पीपुल्स पार्टी” के रूप में किया जाता है, आज भारत की प्रमुख पार्टियों में से एक है। यह दक्षिणपंथी राजनीतिक स्थिति वाला एक प्रमुख राजनीतिक दल है। यह सामाजिक रूढ़िवाद और अभिन्न मानवतावाद के माध्यम से सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का दृढ़ता से पालन करता है। यह सक्रिय संगठनों के परिवार का सबसे महत्वपूर्ण सदस्य है जिसे ‘संघ परिवार’ के रूप में जाना जाता है। 1980 में भाजपा आधिकारिक तौर पर गठित हुई थी

राजनीतिक मार्गदर्शन और इसके दो सबसे महत्वपूर्ण नेताओं का नेतृत्व, अटल बिहारी वाजपेयी और एल.के. आडवाणी। ये दोनों ही भारतीय जनसंघ (BJS), राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की राजनीतिक शाखा, स्वतंत्र भारत के राष्ट्रवादी सांस्कृतिक संगठन के सदस्य थे। BJS की स्थापना 1951 में डॉ। श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा की गई थी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) की बढ़ती राजनीतिक शक्ति का मुकाबला करने के लिए, जिसमें कहा गया था कि भारत की राजनीतिक और सांस्कृतिक अखंडता और एकता के सवालों में कई तरह के समझौते किए गए हैं। , जैसे मुसलमानों के लिए तुष्टिकरण की नीति। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की छत्रछाया में बीजेएस की ताकत बढ़ने लगी। लेकिन इसके तुरंत बाद, मुकर्जी की मृत्यु के साथ, संगठन ने राजनीतिक महत्व में गिरावट शुरू कर दी।

यह इस अवधि में था कि वाजपेयी और आडवाणी जैसे नेताओं को तैयार किया गया था, जो भारत के भविष्य के राजनीतिक मामलों की जिम्मेदारी लेने में सक्षम थे। आपातकाल के आह्वान के बाद 1977 के चुनावों में, BJS का समाजवादी और क्षेत्रवादी दृष्टिकोण के साथ तीन अन्य सक्रिय राजनीतिक संगठनों में विलय हो गया। इस गठबंधन को जनता पार्टी कहा जाने लगा। इसने 1977 के चुनावों में शानदार जीत दर्ज की और मोरारजी देसाई के नेतृत्व में सरकार बनाई। हालांकि, बढ़ती आंतरिक गुटबाजी और राजनीतिक अराजकता के साथ, जनता पार्टी 1979 में ध्वस्त हो गई। भारतीय जनता पार्टी की 1980 में औपचारिक रूप से घोषणा की गई, जिसमें जनता पार्टी के नाभिक के सदस्य शामिल थे। वाजपेयी भाजपा के पहले अध्यक्ष थे।

1998 से 2004 तक राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) नामक पार्टियों का गठबंधन बनाकर केंद्र में भाजपा सत्ता में आई। भाजपा के वर्तमान अध्यक्ष अमित शाह हैं। भाजपा संसद की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी है। पार्टी ने 2014 के आम चुनावों में 282 सीटें जीतीं और एनडीए को कुल 336 सीटें मिलीं। 1984 के बाद, यह पहली बार था कि किसी भी पार्टी को संसद में स्पष्ट बहुमत मिला। 26 मई 2014 को, नरेंद्र मोदी भारत के प्रधान मंत्री बने। मोदी लोकसभा में भाजपा के नेता हैं, जबकि अरुण जेटली राज्यसभा में पार्टी के नेता हैं।

चुनाव चिह्न और उसका महत्व

भारतीय चुनाव आयोग द्वारा अनुमोदित, अपनी स्थापना के समय से भाजपा का चुनाव चिह्न “लोटस” है। कमल भारत का राष्ट्रीय फूल है। भाजपा के चुनाव चिन्ह में कई प्रमुख प्रतिनिधित्व हैं। सबसे पहले, प्रतीक का उपयोग एक राष्ट्रीय पहचान को इंगित करने के लिए किया जाता है जो भाजपा दृढ़ता से बढ़ाती है। भाजपा की राजनीतिक विचारधारा को सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के रूप में वर्णित किया जाता है। दूसरे शब्दों में, भाजपा भारत के सांस्कृतिक मूल्यों का पालन करती है। उदाहरण के लिए, भाजपा गौहत्या पर प्रतिबंध को बढ़ावा देती है क्योंकि इसे एक पवित्र पशु माना जाता है। फिर, पार्टी ‘धर्मनिरपेक्षता’ की यूरोपीय धारणा की कड़ी आलोचना करते हुए, भारत की सांस्कृतिक एकता को बनाए रखने का प्रयास करती है।

भाजपा का दावा है कि कांग्रेस एक राजनीतिक पार्टी है जो एक छद्म धर्मनिरपेक्ष विचारधारा है। यह भी मानता है कि सांस्कृतिक राष्ट्रवादी दृष्टिकोण का दृढ़ता से प्रचार करते हुए, यह हिंदू राष्ट्रवाद के प्रचार में वैसे भी नहीं है। इसके विपरीत, भाजपा का कहना है कि यह एक सामंजस्यपूर्ण, एकजुट और एकीकृत भारत के निर्माण के लिए समर्पित है, जो अपनी परंपराओं और विरासत को बनाए रखेगा। पार्टी के उद्देश्यों को इस प्रकार रेखांकित किया गया है: “पार्टी को भारत को एक मजबूत और समृद्ध राष्ट्र के रूप में बनाने का संकल्प है, जो आधुनिक, प्रगतिशील और प्रबुद्ध दृष्टिकोण में है और जो गर्व से भारत की प्राचीन संस्कृति और मूल्यों से प्रेरणा लेता है और इस प्रकार सक्षम है। विश्व शांति की स्थापना और न्यायपूर्ण व्यवस्था के लिए राष्ट्रों के समुदाय में एक प्रभावी भूमिका निभाते हुए एक महान विश्व शक्ति के रूप में उभरना।

पार्टी का उद्देश्य एक ऐसे लोकतांत्रिक राज्य की स्थापना करना है जो सभी नागरिकों को “जाति, पंथ या लिंग, राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक न्याय, अवसर की समानता और विश्वास और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता” की गारंटी देता है। दूसरे शब्दों में, भाजपा का चुनाव चिन्ह। एक अखिल भारतीय “भारत” या भारत के सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व और सम्मान करने के लिए एक अखिल भारतीय दृष्टिकोण का प्रतीक है। दूसरे, कमल देवी सरस्वती का प्रतीक है, जो शिक्षा और शिक्षा की देवी हैं। भाजपा सांस्कृतिक शिक्षा को बढ़ावा देती है। उदाहरण के लिए, यह शिक्षण संस्थानों में भगवद गीता के शिक्षण की सिफारिश करता है।

Bharatiya Janata Party (BJP) Factsheet

Founded December 1980
Founders Atal Bihari Vajpayee and L K Advani
Prominent leaders of BJP Narendra Modi, Atal Bihari Vajpayee, L K Advani, Rajnath Singh, Amit Shah, Sushma Swaraj
Parliamentary Board Chairperson Amit Shah
President of BJP Amit Shah
Leader of BJP in Lok Sabha Narendra Modi
Leader of BJP in Rajya Sabha Arun Jaitley (Finance Minister)
Prime Minister of India Narendra Modi
Former Prime Minister Atal Bihari Vajpayee
Political Position Right Wing (Socialism)
Philosophy Cultural Nationalism, Integral Humanism, Social Traditionalism
Election symbol Bharatiya Janata Party Symbol
Alliance NDA (National Democratic Alliance)
Party type National Party
BJP Youth Wing Bharatiya Janata Yuva Morcha (BJYM)
BJP Women Wing BJP Mahila Morcha (BJPMM)
Student Wing Akhil Bharatiya Vidyarthi Parishad (ABVP)
Peasant’s Wing BJP Kisan Morcha
Colour

Saffron

Seats in Lok Sabha 281 out of 545
Seats in Rajya Sabha 57 out of 245
Head office address 11, Ashoka Road, New Delhi – 110001
Phone no. 011-23005700
Fax 011-23005787
Official website http://www.bjp.org/
BJP current Chief Ministers
Arunachal Pradesh Pema Khandu
Assam Sarbananda Sonowal
Chhattisgarh Dr. Raman Singh
Goa Manohar Parrikar
Gujarat Vijay Rupani
Haryana Shri Manohar Lal Khattar
Himachal Pradesh Jai Ram Thakur
Jharkhand Shri Raghubar Das
Madhya Pradesh Shri Shivraj Singh Chauhan
Maharashtra Shri Devendra Gangadhar Fadnavis
Manipur Nongthombam Biren Singh
Rajasthan Smt. Vasundhara Raje Scindia
Uttar Pradesh Yogi Adityanath
Uttarakhand Trivendra Singh Rawat Doiwala
Party Manifesto

हमारी विचारधारा

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सिद्धांतों और आदर्शों पर आधारित राजनीतिक दल है। यह किसी परिवार, जाति या वर्ग विशेष की पार्टी नहीं है। भाजपा कार्यकर्ताओं को जोड़ने वाला सूत्र है–भारत के सांस्कृतिक मूल्य, हमारी निष्ठाएं  और भारत के परम वैभव को प्राप्त करने का संकल्प; और साथ ही यह आत्मविश्वास कि अपने पुरुषार्थ से हम इन्हें प्राप्त करेंगे।

भाजपा की विचारधारा को एक पंक्ति में कहना हो तो वह है ‘भारत माता की जय’। भारत का अर्थ है ‘अपना देश’। देश जो हिमालय से कन्याकुमारी तक फैला है और जिसे प्रकृति ने एक अखंड भूभाग के रूप में हमें दिया है। यह हमारी माता है और हम सभी भारतवासी उसकी संतान हैं। एक मां की संतान होने के नाते सभी भारतवासी सहोदर यानि भाई-बहन हैं। भारत माता कहने से एक भूमि और एक जन के साथ हमारी एक संस्कृति का भी ध्यान बना रहता है। इस माता की जय में हमारा संकल्प घोषित होता है और परम वैभव में है मां की सभी संतानों का सुख और अपनी संस्कृति के आधार पर विश्व में शांति व सौख्य की स्थापना। यही है ‘भारत माता की जय’।

भाजपा के संविधान की धारा 3 के अनुसार एकात्म मानववाद हमारा मूल दर्शन है। यह दर्शन हमें  मनुष्य के शरीर, मन, बृद्धि और आत्मा का एकात्म यानि समग्र विचार करना सिखाता है। यह दर्शन मनुष्य और समाज के बीच कोई संघर्ष नहीं देखता, बल्कि मनुष्य के स्वाभाविक विकास-क्रम और उसकी चेतना के विस्तार से परिवार, गाँव, राज्य, देश और सृष्टि तक उसकी पूर्णता देखता है। यह दर्शन प्रकृति और मनुष्य में मां का संबंध देखता है, जिसमें प्रकृति को स्वस्थ बनाए रखते हुए अपनी आवश्यकता की चीज़ों का दोहन किया जाता है।

भाजपा के संविधान की धारा 4 में पांच निष्ठाएं वर्णित हैं। एकात्म मानववाद और ये पांचों निष्ठाएं हमारे वैचारिक अधिष्ठान का पूरा ताना-बना बुनती हैं।

(1) राष्ट्रवाद और राष्ट्रीय एकात्मता: हमारा मानना है कि भारत राष्ट्रों का समूह नहीं है, नवोदित राष्ट्र भी नहीं है, बल्कि यह सनातन राष्ट्र है। हिमालय से कन्याकुमारी तक प्रकृति द्वारा निर्धारित यह देश है। इस देश-भूमि को देशवासी माता मानते हैं । उनकी इस भावना का आधार प्राचीन संस्कृति और उससे मिले जीवनमूल्य हैं। हम इस विशाल देश की विविधता से परिचित हैं। विविधता इस देश की शोभा है और इन सबके बीच एक व्यापक एकात्मता है। यही विविधता और एकात्मता भारत की विशेषता है। हमारा राष्ट्रवाद सांस्कृतिक है केवल भौगोलिक नहीं। इसीलिए भारत भू-मंडल में अनेक राज्य रहे, पर संस्कृति ने राष्ट्र को बांधकर रखा, एकात्म रखा।

(2) लोकतंत्र: विश्व की प्राचीनतम ज्ञात पुस्तक ऋग्वेद का एक मंत्र ‘एकं सद विप्राः बहुधा वदन्ति उल्लेखनीय है। इसका अर्थ है, सत्य एक ही है। विद्वान इसे अलग-अलग तरीके से व्यक्त करते हैं। भारत के स्वभाव में यह बात आ गई है कि किसी एक के पास सच नहीं है। मैं जो कह रहा हूं वह भी सही है, आप जो कह रहे हैं वह भी सही है। विचार स्वातंत्र्य (फ्रीडम ऑफ थॉट्स एंड एक्सप्रेशन) का आधार यह मंत्र है।

संस्कृत में एक और मंत्र है- ‘वादे वादे जयते तत्त्व बोध:’ । इसका अर्थ है चर्चा से हम ठीक तत्त्व तक पहुँच जाते हैं। चर्चा से सत्य तक पहुंचने का यह मंत्र भारत में लोकतंत्रीय स्वभाव बनाता है। इन दोनों मन्त्रों ने भारत में लोकतंत्र का स्वरूप गढा-निखारा है। भारतीय समाज ने इसी लोकतंत्र का स्वभाव ग्रहण किया है। लोकतंत्र भारतीय समाज के अनुरूप व्यवस्था है।

भाजपा ने अपने दल के अंदर भी लोकतंत्रीय व्यवस्था को मजबूती से अपनाया है। भाजपा संभवतः अकेला ऐसा राजनीतिक दल है, जो हर तीसरे साल स्थानीय समिति से लेकर राष्ट्रीय अध्यक्ष तक के नियमित चुनाव कराता है। यही वजह है कि चाय बेचने वाला युवक देश का प्रधानमंत्री बना है और इसी तरह सभी प्रतिभावान लोगों का पार्टी के अलग-अलग स्तरों से लेकर चोटी तक पहुंचना संभव होता रहा है।

सत्ता का किसी एक जगह केन्द्रित होना लोकतंत्रीय स्वभाव के विपरीत है। इसीलिए लोकतंत्र विकेन्द्रित शासन व्यवस्था है। केन्द्र, राज्य, नगरपालिका और पंचायत सभी के काम और ज़िम्मेदारियां बंटी हुई हैं। सब को अपनी-अपनी जिम्मेदारियां भारत के संविधान से प्राप्त होती हैं। संविधान द्वारा मिली अपनी-अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए सभी (केंद्र, राज्य, नगरपालिका और पंचायत) स्वतंत्र हैं।  इसीलिए गांव के लोग पंचायत द्वारा गांव का शासन स्वयं चलाते हैं । और यही इनके चढ़ते हुए क्रम तक होता है।

लोकतंत्र के प्रति हमारी निष्ठा आपातकाल में जगजाहिर हुई। 25 जून, 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने भारत में आपातकाल घोषित कर दिया था। नागरिकों के प्रकृति-प्रदत्त मौलिक अधिकार भी निरस्त कर दिए गए थे। यहां तक कि जीवन का अधिकार भी छीन लिया गया था। तत्कालीन जनसंघ (अब भाजपा) नेताओं को जेलों में डाल दिया गया था और पार्टी दफ्तरों पर सरकारी ताले डाल दिए गए थे। अखबारों पर भी  सेंसरशिप लागू हो गई थी।

लोकतंत्र के प्रति अपनी निष्ठा के कारण ही हम (यानि तत्कालीन जनसंघ के कार्यकर्ता) भूमिगत अहिंसक आंदोलन खड़ा कर सके। समाज को संगठित करके एक बड़ा संघर्ष किया। असंख्य कार्यकर्ताओं ने पुलिस का दमन, जेल यातना और काम धंधे (रोजी-रोटी) का नुकसान सहा। इसी संघर्ष का परिणाम था 1977 के आम चुनावों में जनता जनार्दन की शक्ति सामने आई और इंदिरा जी की तानाशाह सरकार धराशाई हो गई।

(3) सामाजिक व आर्थिक विषयों पर गांधीवादी दृष्टिकोण; जिससे शोषणमुक्त और समतायुक्त समाज की स्थापना हो सके: गांधीवादी सामाजिक दृष्टिकोण भेदभाव और शोषण से मुक्त समतामूलक समाज की स्थापना है। दुर्भाग्य से एक समय में, जन्म के आधार पर छोटे या बड़े का निर्धारण होने लगा, अर्थात् जाति व्यवस्था विषैली होकर छुआछूत तक पहुंच गई। भक्ति काल के पुरोधाओं से लेकर महात्मा गांधी व डॉ अम्बेडकर को इससे समाज को मुक्त कराने के लिए संघर्ष करना पड़ा। आज भी यह विषमता पूरी तरह समाप्त नहीं हुई है।

यही वजह है कि अनुसूचित जाति के साथ अनेक प्रकार से भेदभाव होते हैं और उन्हें यह अहसास कराया जाता है कि वे बाकी जातियों से कमतर हैं। शिक्षित और धनवान हो जाने से भी यह विषमता दूर नहीं होती। भारतीय संविधान के रचयिता डॉ अम्बेडकर ने विदेश से पीएचडी कर ली थी। फिर भी वह जिस कॉलेज में पढ़ाते थे वहां उनके पीने के पानी का घड़ा अलग रखा जाता था। भाजपा इसे स्वीकार नहीं करती। हम मानते हैं कि सभी में एक ही ईश्वर समान रूप से विराजता है। मनुष्य मात्र की समानता और गरिमा का यह दार्शनिक आधार है। देश को सामाजिक शोषण से मुक्त कराकर समरस समाज बनाना हमारी आधारभूत निष्ठा है।

किसी एक राज्य या कुछ व्यक्तियों के हाथ में सत्ता के केन्द्रीकरण के अपने खतरे होते हैं और यह स्थिति सत्ता में भ्रष्टाचार को बढ़ाती है। लेकिन गांधीजी की मांग सही साधनों पर भरोसा करने की भी थी। उन्होंने किसी ‘वाद’ को जन्म नहीं दिया, बल्कि उनके दृष्टिकोण जीवन के प्रति एकात्म प्रयास को उजागर करते हैं।

महात्मा गांधी के दृष्टिकोण के आधार पर भाजपा भी आर्थिक शोषण के खिलाफ है और साधनों के समुचित बंटवारे की पक्षधर है। हम इस बात पर विश्वास नहीं रखते कि कमाने वाला ही खाएगा। हमारी दृष्टि में कमा सकने वाला कमाएगा और जो जन्मा है वह खाएगा। हमारा मानना है कि समाज और राज्य सबकी चिन्ता करेंगे। दीनदयालजी मनुष्य की मूल आवश्यकताओं में रोटी, कपड़ा और मकान के साथ शिक्षा और रोज़गार को भी जोड़ते थे। आर्थिक विषमताओं की बढ़ती खाई को पाटा जाना चाहिए। अशिक्षा, कुपोषण और बेरोज़गारी से एक बड़ा युद्ध लड़कर ‘‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’’ का आदर्श प्राप्त करना हमारी मौलिक निष्ठा है। हमारे गांधीवादी दृष्टिकोण ने यह सिखाया है कि इसके लिए हमें विचार या तंत्र बाहर से आयात करने की ज़रूरत नहीं है। अपने सांस्कृतिक मूल्यों के आधार पर अपनी बुद्धि, प्रतिभा और पुरुषार्थ से हम इसे पा सकते हैं।

(4) सकारात्मक पंथ-निरपेक्षता एवं सर्वपंथसमभाव: एक समय पश्चिमी देशों में पोप और पादरियों का राजकाज में अत्यधिक नियंत्रण हो गया था। अगर कोई अपराध करता था तो चर्च में एक निर्धारित राशि का भुगतान करके वह अपराधमुक्त होने का प्रमाण पत्र ले सकता था। नतीजा यह हुआ कि शासन में धर्म के असहनीय हस्तक्षेप का विरोध शुरू हो गया। विरोधियों का तर्क था कि धर्म घर के अंदर की वस्तु है। इस विरोध आन्दोलन से धर्मनिरपेक्षता का प्रादुर्भाव हुआ।

भारत में धर्म किसी पुस्तक, पैगम्बर या पूजा पद्धति में निहित नहीं है। हमारे यहाँ धर्म का अर्थ है जीवन शैली। अग्नि का धर्म है दाह करना और जल का धर्म है शीतलता। राजा को कैसे रहना और व्यवहार करना है यह है उसका राज-धर्म, पिता की क्या ज़िम्मेदारियां हैं, उसे क्या करना चाहिए, यह है पितृ-धर्म। इसी तरह पुत्र-धर्म और पत्नी-धर्म हैं। इसीलिए भारत में धर्मनिरपेक्षता का अर्थ धर्म से निरपेक्ष हो जाना नहीं है।

भारत में धर्मनिरपेक्षता का अर्थ सर्व पंथ समादर भाव है। शासक किसी पंथ को, किसी भी पूजा पद्धति को राज-पंथ, राज-धर्म या राज-पद्धति नहीं मानेगा। वह सभी धर्मों, पंथों एवं पद्यतियों को समान आदर देता है। हमारा उद्देश्य है, न्याय सबके लिए और तुष्टिकरण किसी का नहीं। इसका व्यावहारिक अर्थ है ‘सबका साथ सबका विकास’। हमारे प्रधानमंत्री जी ने कहा है कि  हिन्दओं को मुसलमानों से और मुसलमानों को हिन्दुओं से नहीं लड़ना है, बल्कि दोनों को मिल कर गरीबी से लड़ना है।

(5) मूल्य आधारित राजनीति: भाजपा ने जो पाचंवा अधिष्ठान अपनाया है वह है ‘मूल्य आधारित राजनीति’। एकात्म मानववाद मूल्य आधारित राजनीति पर विश्वास करता है। नियमों और मूल्यों के निर्धारण के वायदे के बिना राजनीतिक गतिविधि सिर्फ निज स्वार्थपूर्ति का खेल है। भाजपा ‘मूल्य आधारित राजनीति’ के निर्माण के लिए प्रतिबद्ध है और इस तरह सार्वजनिक जीवन का शुद्धिकरण एवं नैतिक मूल्यों की पुन:स्थापना उसका लक्ष्य है।

आज देश का संकट मूल रूप से नैतिक संकट है और राजनीति विशुद्ध रूप से ताकत का खेल बन गई है। यही वजह है कि देश नैतिक ताकत के लुप्तिकरण से जूझ रहा है और मुश्किलों का सामना करने की अपनी क्षमता को खोता जा रहा है। जब हम इन पांचों निष्ठाओं की बात करते हैं तो अपने आसपास या देश में घटे कुछ ऐसे प्रसंग ध्यान में आते हैं, जिनसे लगता है कि हम हर स्तर पर पूरी तरह सभी निष्ठाओं का पालन करते हैं, यह नहीं कहा जा सकता। पर, हम यह विश्वास से कह सकते हैं कि ये निष्ठाएं हमारे लिए प्रकाश-स्तम्भ की तरह हैं। हम सबको यह प्रयत्न करते रहना ज़रूरी है कि हम अपना जीवन और अपनी पार्टी को इन निष्ठाओं के आधार पर चलाएं।

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